बिणास-बावनी 
                      बेणियौ 
छियां फिरी जेठ दुपारां छिपती,  अधिक अरू तपती आसाढ़। 
बणी आस बरसण री भारी,  बहसी कुण जाणी ही बाढ।। 
                    सावण लाग्यां रै ई सागे,  अह बणिया बिरखा अहनांण। 
                      सप्तमी मानसून  रै सेती,  पूगी मरुधर धरा प्रमांण।।2।। 
                    सज धज नैं आयौ घण साजन, तपती  घण धर मेटण तास। 
                      मुसलाधार वरसियौ  मेहौ, सोख  नीर धर सोरा सास।।3।। 
                    हरख रया मिनखां रा  हिवड़ा, सावण  साखां होसी सीर। 
                      हाल्या लै  खेतां में हलिया, बिरखा  तलिया जातां बीर।।4।। 
                    बीती आठम आखी बरसत, परसत  साखी जलां प्रमांण। 
                      नवमीं गजब धार जल नांखी,  दसमीं डाकी पणौ दिखांण।।5।। 
                    बरसै रात दिवस तिथ भूखी,  बारस चूकी नहीं बहांण। 
                      काया किया तेरस धर कूकी,  धूंकी चवदस विधन धरांण।।6।। 
                    चालू कियौ राज जम चालौ,  बरसालौ बरसै बिकराल। 
                      मरुधर धरां मुसीबत मांडी, पाबन्दी छाडंी घण पाल।।7।। 
                    आठम सूं अमावस आखी, बरस  बरस नैं भरिया बन्ध। 
                      फूट्या बन्ध  नीर घण फेल्यौ, फन्दै  दीधा जम रै फान्ध।।8।। 
                    लेखौ लहां बिणासी लीला, सरतण ढीरला पड़वै सेंण। 
                      हिवड़ौ बलै नेंण जल हालै,  देखौ मालै विधना देंण।।9।। 
                    पांणी रा फोड़ा घण पेली,  जल अब खेली झाका झीक। 
                      किण नूं कहां विदाता कोपी,  लोपी बूरिखा मरुधर  लोक।।10।। 
                    बन्ध पिच्याक तोड़िया बन्धण, किया खाख संधण रा काम। 
                      फेल्यां नीर  लागिया फन्दण,  रंधण सीर जागिया राम।।11।। 
                    भावी अवर बिलाड़ा भूमी, चावी हुयगी विघना चेत। 
                      परबल वेग पिच्याकै पांणी, दांणी दुख हांणी घण हेत।।12।। 
                    मोटी पाल टूटणी मुसकल, जांण  न सकिया पांणी जोर। 
                      पोड्या मसत  गांव पाड़ीसी,  रातूं सूता ओढ्या रोर।।13।। 
                    घण ढीकर धाम अन ध्रावां, थिर चावां कीकर नहं थाट। 
                      जाण्यौ कुण  सूता रह जास्यां, बहजास्यां  पांणी रै बाट।।14।। 
                    आ नामी माटी उपजाऊ, साऊ  बहगी पांणी साथ। 
                      पोची आय गई धर परती,  खूट गयौ धरती रौ खात।।15।। 
                    खाडा घाल दिया खेतां में,  कस रेता सूं भरिया कूप। 
                      बिधना किरसांणां हि बालै, रम  बिरखा बिकरालै रूप।।16।। 
                    आछा धान कियां उपजेला, मुसकल  बरसां केई मांण। 
                      बे दिन कद पाछा बावड़सी,  आवड़सी खेतां हर आंण।।17।। 
                    चालै जल हुयनैं घण  चोड़ै, तोड़ै  सड़कां अवर तलाब। 
                      ढावा नैं तरवर स्सै ढहिया,  बहिया विहंग पसु बहाव।।18।। 
                    आडावल परबत सूं ऊठी, लूणी  लूंठी बणावै लोक। 
                      खमा दमा टांकनैं खूंटी, थल रूठी चूंटी सज थोक।।19।। 
                    डमरूनाथ हिमालै  डरियौ, करियौ  लूणी मरुधर कोप। 
                      पूरा बरस तीस रै पाछै,  लूणी खांचै रेखा लोप।।20।। 
                    छत्तीसौ लूणी  नैं छेड़ी,  झंझैड़ी सूती नैं जोय। 
                      नागम किरी भींबरी नागी, सूंतण लागी आपै सोय।।21।। 
                    रसतै बहती नैं रीसाई, नद  आई राता कर नेंण। 
भागै भरम छत्तीसै भारी, लूणी मंगत सारी लेंण।।22।। 
                    लिखतां लेख  बिणासी लीला,  हत ढीला कलमां रा होय। 
                      थल जागां जल जल ही थायौ, सुमन  मरुधरा कुमलै सोय।।23।। 
                    जलाकार कर  दीनौ जोरां,  अठपोरां बरसण री आभ। 
                      लूणी तणी सिकायत लूंठी, खूंठी टांक दिया नर ख्वाब।।24।। 
                    पूगौ नीर परगनै पाली, जोधांणौ  झाली दुख झाट। 
                      बायड़मेर धरा  नहं बगसी,  लूणी रगसी हरण ललाट।।25।। 
                    दाता पसु बिना जल दोरा,  खोरां ढोरा पाता खींच। 
                      सासां उनालै घण सहिया, बहिया  अब पांणी रै बीच।।26।। 
                    उनालै भैंस्यां अरड़ाती,  पांणी बिन जाती दुख पाज। 
                      सट बहती पांणी सरड़ाटै, अरड़ाटै  चढ़गी जल आज।।27।। 
                    तिरणौ भूल गई जल तेजी,  हेज्योड़ी पाडी रे हेत। 
                      अड़ पाड़ी लेगौ जल आगै,  खोडां अवर न रुकिया खेत।।28।। 
                    धीणौ खूट गयौ घर धणियां,  बणिया खोटा हाल बिणास। 
                      बाछ्या नैं  गाया ंघण बहगी, ऊठी  कहगी अंजल आस।।29।। 
                    बलद ऊंट लूणी में बहगा,  जूणी किरसांणा दुख  झेल। 
                      क्रोडां भर  जीव किलबिलिया, मलिया धर धणिया हत मेल।।30।। 
                    सरवर फूट फूट व्है सीधा,  तरवर तूट तूट बह तेज। 
                      पंछी बण बहन्तै पांणी, सूता बेय गया मृत सेज।।31।। 
                    गहरी नींद सूतोड़ा घर  में, जोड़ायत  टाबरियां जोड़। 
                      चढ़िया नरी हिबोलै चिंतव, ठह लेगी जल मोटी ठोड़।।32।। 
                    प्रभा मायड़ा टाबर पेखत, देखत  गया जलां री दोट। 
                      टोल लिया लूणी टाबरिया, लाडणिया  रहिया जल लोट।।33।। 
                    बामां पिऊ पिऊ कह बहगी,  प्रीतम रै दहगी घण पीड़। 
                      स्सै परिवार बहै घण साथै,  भणगी सुरगां माथै  भीड़।।34।। 
                    मलबौ व्है आछोड़ा म्हेलां, थोड़ा  कै झूंपड़ियां थाग। 
                      एवाड़ा बहगा जल आगै, भाग  गया एवाल्यां भाग।।35।। 
                    घन रौ कवण जापतौ धारै,  तन री पड़गी खेंचा तांण। 
                      लूणी साथ सबां नै लैगी,  हां देगी अणहूंती हांण।।36।। 
                    लूणी लेय गई लाडणिया, लारै  रिया लडावणहार। 
                      बिगड गयौ केयां बूढापौ, बापौ  न केवणिया बार।।37।। 
                    सारै जलम सूं मपण सहियौ,  दहियौ ना मंगता नूं दान। 
                      बो अब जीव नीर में बहियौ, धर  रहियौ गहियौ धन धान।।38।। 
                    कहां किता दुख लूणी केरा,  घेर्या बाडञ घणेरा गांव। 
                      मरुधर नै जलधर कर मांणी,  दुख दांणी पांणी रा दाव।।39।। 
                    निकां बहै मरुधर जल नावां,  चावां नहं इसड़डी जुग चाल। 
                      इसड़ी जल लूणी मत आजै,  लाजेला करिायं चख  लाल।।40।। 
                    झूंझी दुखां धरा जालोरी, दोरी दसा सिरोही दीन। 
न बचियौ दुख सूं नागांणौ, मोणौ इण में मेक न मीन।।41।। 
                    मेहौ बरस धरा मेवाती, माड़ी दसा कठेई मांड। 
                      हुई हांण धरा हाडोती, कोतिक अरु करिया जल कांड।।42।। 
                    किती बाढ़ नदियां रै कारण, दुखी दसा उत्तर प्रदेस। 
                      बचो नहीं बिहार घर बांकी, नाखी असम आफतां नेस।।43।। 
                    हेकट नीर सिंचाई हेतू, बान्ध मोर वी रौ बिख्यात। 
                      भरियौ नरी दिवरां भंगी, रै छंगी जंगी गुजरात।।44।। 
                    सुरआलय बहगा नर सागण, जागण देती बही जमात। 
                      बालम अर बामां जल बहगा, बोल न सकै पोछडी बात।।45।। 
                    टुल बहिया पांणी में टाबर, लोहौ कूटत बया लुहार। 
                      पणयार्यां बहगी परबारी, सोनौ घड़ता बया सुनार।।46।। 
                    बणियां संग दुकानां बहगी, धणियां संग बयौ धन धान। 
                      भख सहिया निसकारा भरत,ा करता काज बया किरसांण।।47।। 
                    जप करता बहगा जल जोगी, रोगी बया लियां ही रोग। 
                      बहिया तंतर मंतर वादी, जंतर रहिया किणी न जोग।।48।। 
                    हलकारै मालण जल हाली, ख्याली बहगा करता खेल। 
                      मसजिद सेती बया मुलांजी, साजी नीर दुखां री सेज।।49।। 
                    खोद दई खेतां जल खायां, गायां सेती बया गुवाल। 
                      टोगड़िया घर सूं जल टोल्या, रोल्या कोप प्रक्रत्ति राल।।50।। 
                    खोड़ा री लाठी जल खोसी, आंधा रौ खोसै आधार। 
                      ममत रोय रही घर मांही, सांगी सरणाी साधार।।51।। 
                    कदै कोप इसड़ौ मत करजै, धरजै अबै प्रक्रत्ति ध्यान। 
                      बेलियौ गीत छत्तीसै बिरखा, दाख्यौ कविया लिछमण दान।।52।। 
                    ग्रीखम-गरिमा 
                        गीत प्रोढ़ 
                      होलका दहण लोग हालै, सुण जातौ सीह। 
                      निसा अब छोटी निहारौ, देख मोटी दीह।।1।। 
                    चेत महिनै गरमास चेती, धरा देती धूप। 
                      लावणी करवा लोग लागा, किया आणंद कूप।।2।। 
                    अंवेर लाटा घरां लोगां, भर लिया भण्डार। 
                      बरस रौ पहलौ मास बीत्यौ, गरम नांय गिनार।।3।। 
                    बेसाख तांई छड़ा बिछड़ा, जांण खलाज जोग। 
                      दोपार तावड़ देख हरखत, लहै सरणौ लोग।।4।। 
                    बेसाख आधौ इयां बीथ्यौ, तपत लागी तांण। 
                      भास्कर तप धरती बिलोकै, सनेही सहनांण।।5।। 
                    बेसाख रातां चानणी बस, मुद्द बिरहण मूक। 
                      बाबइयौ पिव बोल बांणी, करा देवै कूक।।6।। 
                    चानणी रातां मांय चमकै, रजत जिसड़ी रेत। 
                      सिणगार निसा अनेक साजै, हियै चंदब हेत।।7।। 
                    किलोल करवै चंद कामण, मंद बिरहण मन्न। 
                      काढ़वै रातां सोय कोटड़, खरी जागत खिन्न।।8।। 
                    संजोग विधना जेण साजै, तेण आणंद तोर। 
                      बालमा सजनी बीच भालौ, हियै नेह हिलोर।।9।। 
                    ताकता तावड़ होत तकड़ौ, सकी ग्रीखम साख। 
                      इण तरह कर कर धरा ऊपर, बीतियौ बेसाख।।10।। 
                    तावड़ौ करतां सहन तड़फै, पंथ झडपै प्रांण। 
बिकराल तपती जेठ भारी, हुवै त्यारी हांण।।11।। 
                    सरवरां जीवां नीर सूखा, पसु भूखा न पान। 
                      लोगड़ा भोजन खाय लूखा, घमी रूखा ध्यान।।12।। 
                    चावन धीणी हीण चूंटै, पसु खूंटैज पूर। 
                      मुसकिलां चारौ नीर मिलणौ, दिलां झिलणौ दूर।।13।। 
                    आसाज भैंस्यां हुई ओदी, जल न होदी जोर। 
                      मरुधर महिनौ जेठ माड़ौ, तूट पुसकल तोर।।14।। 
                    संचरै सोतौ विपदत सामी, खलक खामी खाय। 
                      अठपोर चिंता ध्राव आंणी, मणां ढाणी मांय।।15।। 
                    कातीसरै में धान काढ्यौ, अड़ी लागी आय। 
                      बाजार ससतौ धान बिकियौ, जेठ माड़ौ जाय।।16।। 
                    किरसांण बणिया जायकहियौ, धणी दहियौ धान। 
                      साहूकार बणिया करै सोदा, धूरत ब्याज धिरांण।।17।। 
                    इण तरह भारत देस आफत, भूख करसां भोग। 
                      चराचर जीवां देख चिंता, जेठ इसड़ौ जोग।।18।। 
                    इण तरह आधौ जेठ आौ, बजै मिरगां बाय। 
                      रोहणी तपती धूप रालै, तनां बालै ताय।।19।। 
                    सहन करता थाकिया सारा, रवी कन्या रीस। 
                      बेहाल अर नर हुवा व्याकुल, ऊबवै अवनीस।।20।। 
                    धनवान जतनां हूंत धीजै, महरी रीझै मन्न। 
                      बारमै निरधन लोग बिलकै, तरस चिलकै तन्न।।21।। 
                    छानड़ी ग्रीखम भली छाजै, तपत थोड़ी ताय। 
                      हवेली बीच धनवान हूता, रटै राम खुदाय।।22।। 
                    बरसात हीणौ जेठ बीतै, खाय गहरी खीज। 
                      दोपार पेली रेत दाझै, चलत दोरी चीज।।23।। 
                    दोपार इसा सूना दीसै, पथ गवाड़ां पार। 
                      अधरात पौ री जेस आभा, पेख जेठ दुपार।।24।। 
                    सून्याड़ सहरां नगर सड़कां, भभकियौ नभ भांण। 
                      दोपार मिनखां नांय दरसण, जेम करफ्यूं जांण।।25।। 
                    धोलपुर नगरी गरम धधकै, निजर बीकानेर। 
जोधांण सीकर तपत जबरी, महत जैहलमेर।।26।। 
                    मारगां चलणौ बोत माड़ौ, पड़ै खतरै प्रांण। 
                      बिकराल लू लिन सलरात बाजै, घिरा राजस्थान।।27।। 
                    प्रताप लूवां धरा पीछम, पथिक झुलसै पूर। 
                      जातरा कंरणौ भूल जावै, जेठ मास जरूर।।28।। 
                    जातरी रसतौ छोड जावै, छिपै दरखत छांव। 
                      रजथान लूवां लगी रबा, घलै मिनखां घाव।।29।। 
                    मरुधरा हन्दा कठण मिनखां, तनां बलती ताय। 
                      बहिलाह जाऊं मरुवासी, रती न घबराय।।30।। 
                    दीखवै बिछड़ा छड़ा दरखत, दा मरुधर धाक। 
                      सोहता पांणी सीर पसुवां, थलां ज्यावै थाक।।31।। 
                    मन आस करता चलत मारग, पाल सरवर पेख। 
                      हुल्ला ठंडो एम हुयगौ, दरा सूखी देख।।32।। 
                    मिरगतिसमआ दीखतां मोदै, समझ पांणी साथ। 
                      मरजाय महिनै जेठ मांही, पसु मरुधरा पाथ।।33।। 
                    जेठ महिनै दोरौ जीणौ, धरा मरुधर धाम। 
                      तरसाय पसु नर अधिक तपती, जलत लू अठजाम।।34।। 
                    इण तरह महिनै जेठ अदकौ, करतदीनौ काढ़। 
                      किरसांण हेतु मास कहियै, आवियौ आसाढ़।।35।। 
                    संवार सिंझ्या रात सारी, तपत उमस तोर। 
                      गरमसा बढ़गौ अधिक गिगनां, जलद चढ़गौ जोर।।36।। 
                    बाबहियौ चढ़र गिगन बोलै, हियौ डोलै हेत। 
                      परदेस प्रतीम घरां परणी, चऊ मासै चेत।।37।। 
                    डोलियौ धीर घणा डोकर, तपत छोकर तंग। 
                      आसाढ़ ऊमस छोड ओलग, आय मिलबा अंग।।38।। 
                    आसाढ़ बिरखा हीण अबड़ौ, खलक करबा खीण। 
                      खूटियौ सारौ संज करसां, जोग दोरौ जीण।।39।। 
                    आजा बिरखा बगत ऊपर, ओज करसां आंण। 
                      गीत प्रोढ़ भीखम ज गरिमा, दाखै लिछमण दान।।40।। 
                    बिणास-बरणण 
                      जांगड़ौ साणौर 
ऊमस तपती आसाढ़ अधिक इल, घणौ जीव घबरावै। 
जलधर चढ्यौ व्योम जणजीवण, घटाघोर घहरावै।।1।। 
                    पिव पिव बोल बिरहणी पेटै, चातक बांण चालवै। 
                      नेंण झराय नवोढ़ा नारी, ओलूं प्रीतम आवै।।2।। 
                    बिरखा आय लगी घर बरसण, सागर भरिया सारा। 
                      फेनां चढ़त नदी जल फेरूं, धाम बहावत धारा।।3।। 
                    कोयल मून रखै इण कारण, पूछ होय नैं पावै। 
                      पावस रितु मनोमोजी पूरा, मेढ़क सोर मचावै।।4।। 
                    हुई सावण महिनै हरियाली, चरै पसुहरा चारा। 
                      पड़िया पी पसु पालर पांणी, धाम दहै घण धारा।।5।। 
                    बीजल घटा खिबै घण बेला, कांठल भूरी काली। 
                      कचजीयां लहरावै कामण, भाल मुखां छिब भाली।।6।। 
                    डर डर करता फिरै डेडरा, सीपौ रो सरणाटौ। 
                      गुजरिया घर घर घणघूमैं, कहियै आडंग काठौ।।7।। 
                    डोलै घर सावण डोकरियां, बाबहियौ नभ बोलै। 
                      वसुधा पवन सूरियौ बाजै, खिड़की वासव खोलै।।8।। 
                    उंडौ गरज रयौ उतरादौ, समगी बिरखा साची। 
                      काबलियां पड़ती घण कांठल, महि पर अदगी माची।।9।। 
                    चलत समीर साधली चुपकी, मेह छांट ली मोटी। 
                      पल पल करड़ाटा कर पलकै, चपला अडी चोटी।।10।। 
                    मुसलधार बरसतौ मेहौ, पड़ै तेज परनाला। 
                      ना मावै जल आडा खाडां, खूब घालिया खाला।।11।। 
                    हुयगी घर अब घडी हेक में, जलाकार सर जोरां। 
                      टप टप झरै म्हेल अर टापर, कटै न खाली कोरां।।12।। 
                    विटप लुकै घण आय बिहंगा, भैस्यां गायां भीजै। 
                      बकरी छांट पड़त बोबावै, धरती करसौ धीजै।।13।। 
                    उडगण झूलै रेत ऊपरां, रंग किरगांटौ राचै। 
                      सील रहै घण सांझ सवेरै, खालण माहंी खांचै।।14।। 
                    तपत घणी त्रिदोखां ताबै, आडंग जीव अमूझै। 
                      सरण चलै घण वात सरीरां, सकै झांवला सूझै।।15।। 
                    रगत चाप बढ़ रोग्यां, दमै सिकायत दूणी। 
                      रूलौ चलत लोचना रोगी, धीमी रिखियां धूणी।।16।। 
                    गरज साथ हाथल धर घालै, केहर बिंदियौ कांटां। 
                      सिणगारां रसहीन सूरमा, बिरहण जोवै वाटां।।17।। 
                    समीर सूरियौ बाजै सरसर, छबी बादलां छाबै। 
                      केकी करत किलोल कांकड़ां, बिरखा तुरत बुलावै।।18।। 
                    हरियाली धरती पर हुयगी, बीडां घास बदावै। 
                      फसल निदांण काढ़ता फेली, महि पर नांही मावै।।19।। 
                    मोखां तणत प्रात वेला में, दिन भर तेजी दीसै। 
                      अरक आकरौ तावड़ ऊग्यौ, परणी अबै न पीसै।।20।। 
                    हरी घास फसलां हरियाली, नीतर भरिया नाडा। 
                      चढ़त अरक पसु आय उछेर्या, लार गवाला लाडा।।21।। 
                    पांणी लेण चली पिणियारी, सज सोला सिणगारां। 
                      प्रभा कटि मुख और पयोधर, निरखै निजरां सारां।।22।। 
                    बीहर हुई लेयनैं बातौ, खच भर चारै खारी। 
                      अबला नांव जचै ना इणरौ, पुरसारथ तन प्यारी।।23।। 
                    खुदही काम करत खेतां में, जोड़ै प्रीतम जोरां। 
                      पहल सांझ वर आय पूगवै, घास रालियौ गोरां।।24।। 
                    खीचड़ करै तयार खाँण हित, दोड़त करै दुवारी। 
                      सारा नै जीमाय सुवाणै, बिण पछ खुद री बारी।।25।। 
                    सेजां री सोभा तन सजनी, रति क्रीडा में रूड़ी। 
                      भेट्यां दूर थकान दिन भर री, चढ़गी खिलकै चूड़ी।।26।। 
                    बरसण लागौ मेह बारणै, साजन बरसै सेजां। 
                      तरुणी तनधर लेवै तिरपत,लागी होडां बेजां।।27।। 
                    मलयाचल मुगतागिर महिधर, हिमवंती हेमालौ। 
                      आडावल विंध्या अरबूदा, बहवै बिरखा बालौ।।28।। 
                    परबता हरियाल छाई प्रभ, सोभा देवै सांची। 
                      कुच जिम धरै हरापटु कामण, अरध ढकै छिब आछी।।29।। 
                    गंगा जमना बहै गोमती, माही सिन्धु न मावै। 
                      बिरमपुत्र तेजी घर बहती, लगीत साथ लिज्यावै।।30।। 
                    चोड़ौ पाट सुरसती चम्बल, गंडक छोडै गेलौ। 
                      लूणी मरुधर में नीं लाजै, खोटौ बनास खेलौ।।31।। 
                    बरसालोज बरसतौ बालौ, सारा आणंद साथै। 
                      कथी कवियौ लिछमण कीरत, मेहौ सिर रै माथै।।32।। 
                    सावण-सुखमा 
                      छप्पं 
मही भारत महान, आना बनां घम अप्पै। 
घण आगे जग ग्यान, थान रू देवल थप्पै।। 
धिन धिन रिखियां धाम,दोहता कविजण दाखी। 
हां साखी इतिहास, बीरता वीरां बांकी।। 
समाज साहित्य संस्कृति, कला प्राकृत गिरि कन्दरा। 
एक सूं एक आछा अठै, विविध तिंवार बसुन्धरा।।1।। 
                    जोरां तपवै जेठ, इला व्है जेम अंगारौ। 
                      लूवां तणी लप्पट, खलक रौ पेंडौ खारौ।। 
                      आंधी चलै आसाढ़, सरब चारा जल सांसा। 
                      काय व्है किरसांण, आंख फाड़ै नभआसा।। 
                      खज खांण पांण फीका खलक, म्हां कठण उनालौ कडण। 
                      आवियौ आस पूरम अबै, लोक हियौ साबण लडण।।2।। 
                    खेजड़ जबरा खोख, नींम आछी निंबोली। 
                      सुगन होबियां सांच, मही ना बिरखा मोली।। 
                      मचसी बाजर मोठ, जोर गंवार जंवारां। 
                      तिसिया कांकड़ तेज, भरां मूंगड़िया भारां।। 
                      जेठ मास तप रोयण जबर, वाय घणौ मिरगां बजै। 
                      ऊगतौ रवी अर आंततौ, सुगन नभां रातड़ सजै।।3।। 
                    पेल झपेटे पूर, ताल भरसी तालावां। 
                      नालां नदियां नेह, ऊमड़ जल जलै इलावां।। 
                      सावण थायौ सीर, मही पर जल ना मावै। 
                      बातैआयां बाय, गीत किरसांण घुरावै।। 
                      घर जोत रहया बलद्या धवल, खाता बहता खेतड़ां। 
                      चावता रहै धणियाप चित, है न अटक्या रेतड़ां।।4।। 
                    जुगत जवाड़ौ जोत, पकड़वै हात पिरांणी। 
                      नसल बैल नागौर, भलीविध देवत बांणी।। 
                      कोड करै किरसांण, फूंफाड़ा नार्यां फाबै। 
                      भली सुणी भगवान, तोर आई अब ताबै।। 
                      चट साज समल घर सूं चलै, भातौ लेयन भारियां। 
                      कलेवौ कंत दही राब कर, नीरण नांखै नारियां।।5।। 
                    दिन चढ़िया दोपार, हलियौ छोड हेतालू। 
                      नीरण बलद्यां नांख, अन सूं प्रिथमी पालू।। 
                      दहीं घी अर दूध, दपट करलै दोपारी। 
                      आजौ घड़ीक एक, दुय थाकेल उतारी।। 
                      जोतण खेत झुट जाट झट, आलस तनां न आंणवै। 
                      घुरावै जोत गुदलक गहण, छोकी बिरती छांणवै।।6।। 
                    करै सांझ किरसांण, तुरत ब्यालू तय्यारी। 
                      खीच दूध घी खूब, पुरस अरधांगिण प्यारी।। 
                      तेल फिटकड़ी त्यार, नाल बैल्यां नै नामी। 
                      कर महनत कड़पांण, खोडा न राखण खामी।। 
                      जोतिया खेत सारी जमीं,प्रीत भली पुरसारथी। 
                      सावणूं खास होसी सिरै, (थारी) बाटां जोवै भारती।।7।। 
                    झट तड़कै उठजाय, काम करबा किरसांणी। 
                      पीस बाजरी पूर, चाल चूल्लौ चेतांणी।। 
                      गायां भैस्यां गोर, दोर पुरत्यां दोपारी। 
                      भातै रोट बणाय, ध्यान टाबरियां धारी।। 
                      सिर खारी गोदयां सिसु समल, लार रसी टोगड़ लियां। 
                      निदांण करती थाकै नहीं, कहौ ? नांव अबला कियां।।8।। 
                    करनै खेतां काम, पूग घर ठोडां पोरां। 
                      जल लेवण नैं जाय, जचै पिणियारी जोरां।। 
                      सटकै खीच सिजाय, कोरियै बंटौ कीनौ। 
                      धिनधिन थारी दाम, भाव महनत रौ भीनौ।। 
                      सबनै सुवांण सोवै सजक, महिमा नारी मांण नै। 
                      ताहीर अपर कीरत तरफ, है गुम्मेज हिंदवांण नैं।।9।। 
                    बजै सूरियौ बाय, आय बिरखा उतरादी। 
                      बीजल रौ भललाट, भुवन नाड्यां भरवादी।। 
                      गजल मांदला गाज, केी जीवारूं कांपै। 
                      नर रोई में न्हास, झटोझट ओटौ झांपै।। 
                      चारा धावड़ समिया चरण, भरण पेट मग भावियौ। 
                      फजल कर राम आछी फसल, आछौ सावण आवियौ।।10।। 
                    केखी करै किलोल, डेडरा बोलत डोलै। 
                      बाबइयौ उड ब्योम, बांण पिव पिव री बोलै।। 
                      रचिया मचिया रूंख, कीरती कांकड़ केरी। 
                      सोभा सुरग समांण, घणा मन मरुधर घेरी।। 
                      पीलै बादल गुदलक प्रभा, सावण आणंद सोहमा। 
                      चराचर जीव सुख में चरम, मानीजै चित मोहणा।।11।। 
                    चन्द्रबदनि चितचाव, गति जिम मस्त गयंदी। 
                      हालत ढुलै हुल्लास, सुन्दरी खिंडै सुगन्धी।। 
                      कटि भूखै केहरी, सजै जिम झंप सिकारां। 
                      दीपै बीजल दंत, ऊभै सतदल अंखियारां।। 
                      गमण ससि दिस पयोधर गिरी, रुप ब्याल केसां रमण। 
                      सावणी तीज आवौ सजण, कोड हियै आंणद कमण।।12।। 
                    सावण सिव रा सोम, सदन सुन्दरियां साजै। 
                      भाव भगती विभोर, छिबी सोमां वन छाजै।। 
                      अवर करै उपवास, चन्द्रमोली जल चाढ़ै। 
                      चंदण टीकां चाव, कामण सिवलिंगां काढै।। 
                      वन सोम करत कर भ्रमण, कांकड़ महिमा कामणी। 
                      महिमा धिनधिन इण मरुधरा, सुखमा बढ़गी सावणी।।13।। 
                    महिमा सावण मेल, रही अदगी रेतीलां। 
                      हुई सबै हरियाल, टिकी छबी ऊंचा टीलां।। 
                      पाबासर सी प्रती, थलवट सरोवर थाया। 
                      मुगत पांण मराल, उडि तिम सारस आया।। 
                      हालता भरै चौकड़ी हिरण, खुसवै लीला खावतां। 
                      बीकांण थली सोभा बढ़ी, अदगौ सावण आवतां।।14।। 
                    बंधिया जबरा बांध, हुआ छकलेत हिबोलां। 
                      नहरां पाणी नाप, छोड पज चढ़िया छोलां।। 
                      बाढ़ा नदियां बेय, आसरा केई उजाड़ै। 
                      हांणी करदै हाय, बणी गत बाही बिगाड़ै।। 
                      आजाय गांव सहरी इला, चटकै बाढ़ चपेट में। 
                      धकजाय मिनख धन ध्राव धर, फटकै पांणी फेंट में।।15।। 
                    बूंठती बरसात, भली धरती पर भाया। 
                      एक आई आधार, कर देवै आही काया।। 
                      महुधर हंदौ मांण, छिता इह कारण छाजै। 
                      कोड करै किरसांण, गयण उतरादौ गाजै।। 
                      चावती बगत आवौ चलर, बलू रयौ बरसात्तड़ी। 
                      मरुधरा भरोसै मेह रै, अवर न बालौ आंतड़ी।।16।। 
                    बरसालौ 
                      गीत काछौ 
तपत रवी सकल आसाढ़ तायौ; अबै सावण मास आयौ,
घणौ धन छायौ गिगन। 
भल जगत भायौ; छोल छायौ, कमायौ किरसांण।। 
हल परै हाथां, सबद साथां, गीत पाथां गावता। 
रत दिवस रातां, बीज बातां, गिरी घातां मांण।।1।। 
                    लगन इकजल झड़ी लागी, भुवन विपदा दुर भागी,
                      अनुरागी मनां उछब। 
                      खुस नांय खागी, दलां दागी, बाध जागी व्याध।। 
                      घन गिगन गाजै, सोर साजै, नित मोर छाजै नचत। 
                      रिख संत राजै, वप विराजै, मनां भाजै माद।।2।। 
                    होद सर लेवै हिलोलां, छवै नदियां फेन छोलां,
                      डरां नद डोलां डकत। 
                      टाबरां टोलां, रमे रोलां, प्रभा पोलां पूर।। 
                      जग जगुतजांणै, मोज मांणै, दम्पती ठांणै दिपत। 
                      प्रीती प्रमांणै, तंत तांणै, नव ऊफांणै नूर।।3।। 
                    बाबइयौ आकास बोलै, डडरा रट सबद डोलै,
                      हिय छोलै, बिरहणी। 
                      अलि फूल ओलै, झुकत झोलै, रसिक खोलै रोक।। 
                      कोयलां क्रीती, परख प्रीती, मौन नीती मोहणी। 
                      चुगाऊ चीती, जोर जीती, परस भींती पोख।।4।। 
                    बसुधा हरी घण घास बाड़ी, सजत जिम वधु हरी साड़ी। 
                      मन्द ताडी मरुधरा। 
                      जस करे झाड़ी, बोर बाड़ी, रोग ताड़ी रूंख।। 
                      खेजड़ा खासा, आथ आसा, नींम घासा घर नखै। 
                      तरवरी तासा, मिटी मासा, टीब बासा टूंक।।5।। 
                    चरै वन पसु हरा चारा, भवन सिझ्या घास भारा,
                      पय सहारा पालरौ। 
                      गुदलक गुहारा, सोर सारा, पेख डारा पाथ।। 
                      गोहरां गारा, सूंत सारा, टोल न्यारा टोगड़ा। 
                      दूहती दारा, धवल धारा, उणियारा आथ।।6।। 
                    लूर भादव मास लागां, धरर बरसै जेम धागां,
                      कामणी कागां कहै। 
                      जामणी जागां, राग रागां, बात नागां बूझ।। 
                      दिल तड़ित दागै, सिहर सागै, गलै लागै यूं घणी। 
                      लख लगन लागै, प्रती पागै, धीर भागै धूज।।7।। 
                    अंधारौ मिहर उगालै, भगत रिय दिस रवि भालै,
                      दिलां नालै दरसणा। 
                      बरसता बालै, खूब खालै, लगी चालै लूंब।। 
                      सोहर समालै, गांव गालै, रूप बिकरालै रमै। 
                      रम्बाद रालै, मही मालै, घर विचालै धूूम।।8।। 
                    हुय फसल हरियाल हाची, मझां पावस रितु माची,
                      उमंगां आछी उरां। 
                      सदपाल साची, जगत जाची,खुसी नाची खेत।। 
                      मोटा मतीरा, हरित हीरा, काकड़़ी सीरा करिी। 
                      मरुधर महि रा, धरम धीरा, बणत नीरा बेत।।9।। 
                    प्रभ फसल आसोज पूरी, दुखां व्है किरसांण दूरी,
                      तेज सूरी तावड़ी। 
                      झूंझै जरूरी, नाज नूरी, आस पूरी ईस।। 
                      बरसता बीती, हत हरीती, रात सीती घर रहै। 
                      सिट्यां सुरीती, काट क्रीती, लोग छीती लीस।।10।। 
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